
शहीद राजेंद्रनाथ लाहिड़ी (Rajendra Nath Lahiri) को देशभक्ति और क्रांतिकारी (Revolutionary) की राह विरासत में मिली थी. एक क्रांतिकारी होने के साथ ही वे बुद्धिजीवी और कई समाचार पत्रों के लिए लेखन का काम भी किया करते थे. काकोरी क्रांति (Kakori Kranti) में रेलगाड़ी की चेन खींचने का काम लाहिड़ी ने ही किया था और गिरफ्तार होने के बाद उन्होंने फांसी की सजा को खुशीखुशी स्वीकार किया. अंग्रेजों ने उन्हें तय समय से दो दिन पहले, 17 दिसंबर 1927 ही फांसी दे दी थी जबकि इसके दो दिन बाद बाकी लोगों को फांसी दी गई.
क्रांतिकारी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी (Rajendra Lahiri) जिन्होंने 26 साल की उम्र में फांसी के फंदे को निर्भीकता से अपने गले लगाया था. वह उस दौर में युवाएं के लिए प्रेरणा और आदर्श बना गए थे. 17 दिसंबर 1927 को अंग्रेज सरकार ने घबरा कर तय समय से दो दिन पहले ही फांसी दे दी थी
राजेंद्र लाहिड़ी हमेशा ही एक शांत स्वभाव के व्यक्ति माने जाते थे लेकिन उनके भीतर क्रांति की तीव्र ज्वाला पालने वाले राजेंद्र हमेशा मुस्कुराते रहते थे. जब उन्हें पढ़ाई के लिए वाराणसी भेजा गया, तो वे सचिन्द्रनाथ सान्याल के संपर्क में आए जो हिंदुस्तान रिवॉल्यूशनरी एसोसिएशन के संस्थापकों में से एक जिसकी अगुआई राम प्रासद बिस्मिल कर रहे थे. महान क्रांतिकारी को अन्नत कोटि वंदन, स्वतंत्रता का सूर्य बिना आपके बलिदान के संभव न था.
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