
Punjab Stopped Haryana Water
Punjab Stopped Haryana Water: पंजाब-हरियाणा के बीच SYL नहर को लेकर जल विवाद फिर गरमाया, पंजाब ने पानी देने से किया इनकार, हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट से निर्माण पूरा कराने की मांग करते हुए केंद्र से हस्तक्षेप की अपील की।
सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद एक बार फिर से (Punjab Stopped Haryana Water) पंजाब और हरियाणा के बीच तीव्र हो गया है, और मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है।

पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर को लेकर दशकों पुराना जल विवाद एक बार फिर गहराया, सुप्रीम कोर्ट की दखल के बावजूद समाधान नहीं, पंजाब ने जल साझा करने से इनकार किया, हरियाणा ने निर्माण की मांग तेज की।
विवाद की पृष्ठभूमि
Punjab Stopped Haryana Water: 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद, हरियाणा को रावी और ब्यास नदियों के पानी का हिस्सा देने के लिए एसवाईएल नहर की योजना बनाई गई थी। हरियाणा ने अपने क्षेत्र में नहर का निर्माण पूरा कर लिया है, जबकि पंजाब में यह कार्य अधूरा है। पंजाब सरकार का कहना है कि राज्य के पास बांटने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है और नहर के लिए आवश्यक भूमि भी अब उपलब्ध नहीं है।
J&K Pahalgam Terror Attack: दिनदहाड़े कश्मीर में बड़े आतंकी हमले के बाद उतरी सेना, एक्शन शुरू!
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
Punjab Stopped Haryana Water: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह पंजाब और हरियाणा के बीच इस विवाद को सुलझाने में सक्रिय भूमिका निभाए। कोर्ट ने केंद्र से पंजाब में नहर के लिए आवंटित भूमि का सर्वेक्षण करने और निर्माण की संभावनाओं का आकलन करने को कहा है।
राज्यों की प्रतिक्रिया
पंजाब: राज्य के राजनीतिक दलों का कहना है कि पंजाब के पास बांटने के लिए पानी नहीं है और नहर के लिए आवश्यक भूमि भी अब उपलब्ध नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का विरोध किया है और कहा है कि वे इस मुद्दे पर अदालत में लड़ाई लड़ेंगे।
हरियाणा: राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का स्वागत किया है और पंजाब से नहर का निर्माण पूरा करने की मांग की है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि एसवाईएल हरियाणा की जीवन रेखा है और राज्य के किसानों के लिए आवश्यक है।
निष्कर्ष
Punjab Stopped Haryana Water: एसवाईएल नहर विवाद एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है, जिसमें दोनों राज्यों की जल आवश्यकताएं और संवैधानिक दायित्व शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता और केंद्र सरकार की मध्यस्थता इस विवाद के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।