High Court Angry on Ram Rahim: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को बार-बार मिल रही पैरोल पर कड़ी आपत्ति जाहिर की. हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार से कहा कि अब बिना अदालत से पूछे राम रहीम को पैरोल नी दी जाए. कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा है कि राम रहीम के अलावा कितने लोगों को इस तरफ पैरोल दी गई.
क्या होती है पैरोल, (High Court Angry on Ram Rahim) जो राम रहीम को बार-बार मिल रही है? किसी कैदी को कौन देता है पैरोल, इसका आधार क्या होता है? समझते हैं
हरियाणा: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को बार-बार मिल रही पैरोल पर कड़ी आपत्ति जाहिर की. हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार से कहा कि अब बिना अदालत से पूछे राम रहीम को पैरोल नी दी जाए. कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा है कि राम रहीम के अलावा कितने लोगों को इस तरफ पैरोल दी गई. बता दें कि राम रहीम को अब तक 6 महीने से ज्यादा की पैरोल मिल चुकी. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी ने राम रहीम की पैरोल के खिलाफ हाई कोर्ट का का दरवाजा खटखटाया है.
कहां से आया पैरोल और फर्लो?
High Court Angry on Ram Rahim: कैदियों के लिए पैरोल और फर्लो (Leave of absence) की व्यवस्था जेल अधिनियम 1894 में की गई है. हाल ही में गृह मंत्रालय ने मॉडल जेल मैनुअल, 2016 में पैरोल एवं फर्लो से संबंधित दिशा-निर्देशों में कई बदलाव भी किये हैं.
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किस ग्राउंड पर मिलता है पैरोल?
High Court Angry on Ram Rahim: कोई आरोपी दोषी करार दिये जाने के बाद, जेल में बंद है तो उसे कुछ खास कंडीशन में पैरोल मिल सकती है. जैसे- किसी करीब की मौत हो गई, कोई बहुत गंभीर रूप से बीमार हो, बीवी की प्रेग्नेंसी हो, बेटा-बेटी की शादी आदि हो या कोई ऐसा काम हो जहां उसका रहना अत्यंत आवश्यक है. ऐसी कंडीशन में कैदी के जेल में अच्छे व्यवहार को ध्यान में रखते हुए पैरोल दी जाती है. अच्छे व्यवहार से मतलब है कि वह जेल के सभी नियम फॉलो करे, जो काम मिले पूरी तरह और समय पर करे, अच्छा बर्ताव रखे, दूसरे कैदियों की मदद करे और जेल में कोई अपराध न करे.
कौन देता है पैरोल?
High Court Angry on Ram Rahim: प्रत्येक जिले में डिस्ट्रिक पैरोल एडवाइजरी कमेटी होती है. यह कमेटी, जेल प्रशासन को सलाह देती है कि किस कैदी को पैरोल मिलनी चाहिए और किसको नहीं. इसका मतलब यह कि अगर कोई कैदी पैरोल चाहता है तो उसे पहले जेल प्रशासन को आवेदन देना होगा. उसके आवेदन पर जेल प्रशासन, डिस्ट्रिक पैरोल एडवाइजरी कमेटी से सलाह मांगेगा. उस सलाह के आधार पर फैसला लिया जाता है. सीधा-सीधा कहें तो पैरोल देने का फैसला सरकार के ही हाथ में होता है. इसमें कोर्ट का सीधा दखल नहीं होता है.
कितनी बार मिलती है पैरोल?
कोई कैदी, कितनी भी बार पैरोल ले सकता है. इसकी कोई बाध्यता नहीं है. एडवोकेट आदर्श कहते हैं कि मान लीजिये कि किसी कैदी को पहली बार 10 दिनों के लिए पैरोल मिली और उसने पैरोल की किसी शर्त का उल्लंघन नहीं किया तो दोबारा कितनी भी बार पैरोल का आवेदन दे सकता है. उसके व्यवहार को देखते हुए एक महीने तक का पैरोल दिया जा सकता है.
तो फर्लो क्या है?
High Court Angry on Ram Rahim: यह तो हुई पैरोल की बात. अब बात करते हैं फर्लो (Leave) की. पैरोल और फर्लो में सबसे बड़ा फर्क यह है कि पैरोल, कम अवधि की सजा में मिलती है, जबकि फर्लो, लंबी अवधि की सजा में मिलती है, जैसे- आजीवन कारावास आदि. फर्लो अधिकतम 14 दिनों की ही मिलती है. फर्लो के लिए यह जरूरी नहीं है कि कैदी के घर में कोई इमरजेंसी हो या ऐसी स्थित हो जहां उसका रहना जरूरी ही है. कई बार ऐसी कंडीशन के बिना भी फर्लो दे दी जाती है. जैसे कोई कैदी लंबे समय से जेल में बंद है तो उसके मानसिक स्वास्थ्य और मोनोटोनी ब्रेक करने के लिए भी फर्लो दे दी जाती है. फर्लो भी डिस्ट्रिक पैरोल एडवाइजरी कमेटी की सलाह पर दी जाती है.
क्या पैरोल या फर्लो सजा में काउंट में होती है?
High Court Angry on Ram Rahim: मान लीजिये किसी कैदी को 7 साल की सजा हुई है, और उसे 1 महीने का पैरोल मिल गया तो ऐसा नहीं है कि 7 साल की सजा में से 1 महीना कम हो जाएगा. पैरोल की अवधि सजा के बाहर होती है. जबकि फर्लो में ऐसा नहीं है. फर्लो की अवधि सजा में ही काउंट होती है.
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