Doomsday Clock Today Update: महाविनाश की घड़ी (डूम्सडे क्लॉक) में आधी रात से 90 सेकेंड पर सेट किया गया है। लगातार दूसरे साल प्रलय की घड़ी में ऐसा किया गया है। इस घड़ी में 12 बजते ही तय हो जाएगा कि धरती अब इंसानों के रहने लायक नहीं है। इस घड़ी में साल 2023 में रूस और यूक्रेन के युद्ध की वजह से महाविनाश में सिर्फ 90 सेकेंड बचे थे।
वैज्ञानिकों ने साल 2024 में भी बड़ा खतरा बताया है। दरअसल, दुनिया में एक सांकेतिक घड़ी है। यह बताती है कि दुनिया महाविनाश से कितनी दूर है। इसे कयामत की घड़ी भी कहा जाता है।
इस घड़ी में 12 बजते ही इंसानों का सर्वनाश शुरू हो जाएगा। हर साल यह घड़ी तय करती है कि मानव जाति के प्राकृतिक, राजनीतिक, परमाणु युद्ध को रोकने के लिए कितना समय बचा है। बीते 75 सालों से घड़ी की सूइयां इसके हिसा चलती हैं कि दुनिया ने जलवायु परिवर्तन, परमाणु जंग और धरती पर मानव सभ्यता को विनाश करने वाले खतरों से निपटने के लिए क्या कदम उठाए हैं। बीते साल भी कयामत की घड़ी की सुइयों को मध्यरात्रि से डेढ़ मिनट पहले सेट किया गया था। इससे पहले शीत युद्ध के दौरान ऐसे हालत थे।
दो साल से एक ही समय पर सेट है घड़ी
दो साल इस घड़ी की सुइयां एक ही समय पर सेट होने का मतलब है कि हर मामले में धरती को इंसान को नुकसान पहुंचा रहा है। प्रलय का समय नजदीक आ रहा है। इंसान राजनीतिक, प्राकृतिक, सांस्कृतिक और पर्यावरण को बिगाड़ने का काम कर रहा है। बुलेटिन के अध्यक्ष और सीईओ रैशेल ब्रोंसन ने बताया कि घड़ी को इस तरह सेट करने का मतलब यह नहीं कि दुनिया स्थिर है।
जानिए कब बनाई गई थी घड़ी
ब्रोंसन ने बताया कि दुनिया में बिल्कुल इसका उल्टा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि धरती को बचाने के लिए दुनिया भर की सरकारों और समुदायों के लिए कई तरह के सकारात्मक फैसले लेने होंगे। वैज्ञानिकों ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले के बाद परमाणु वैज्ञानिकों के एक समूह ने इस घड़ी को बनाया था। मैनहट्टन परियोजना के तहत शिकागो यूनिवर्सिटी में इसे बनाया गया था।
परमाणु वैज्ञानिकों के बुलेटिन की तरफ से हर साल इस घड़ी का बदला जाता है। इस बार के बुलेटिन में परमाणु वैज्ञानिकों ने रूस-यूक्रेन युद्ध, गाजा-इजरायल युद्ध और बीते साल का सबसे गर्म वर्ष होना, विनाश की एक प्रमुख वजह मानी। AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को भी विकास के लिए एक विघटनकारी तकनीक के तौर पर देखा जा सकता है। इससे भ्रष्टाचार और दुष्प्रचार बढ़ने की आशंका जताई गई है।